Dedicating a poem at moon to you friend. Hope you like.
उस चांद से पूछो कभी,
वह चांद है या शख्स कोई,
सिर्फ रात में नज़र आता है।
क्या दिन की कोई फिक्र नहीं,
उजाले में सो जाता है।
वह अक्सर साथ निभाता है,
सब’का हमसाया कहलाता है,
कभी अब्र में खो जाता है,
कभी बर्क में सो जाता है,
आधा-आधा हो जाता है,
कभी पौना हो जाता है,
इक तारे को छोड़ अकेला,
गायब पूरा हो जाता है।
तारों की इक भीड़ लिए,
रातों में मेरे घर आता है,
और गांव-गली के बच्चों का,
चंदा मामा कहलाता है।
True words friend 👌
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Thankyou so much friend 🙏🙏
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Dedicating a poem at moon to you friend. Hope you like.
उस चांद से पूछो कभी,
वह चांद है या शख्स कोई,
सिर्फ रात में नज़र आता है।
क्या दिन की कोई फिक्र नहीं,
उजाले में सो जाता है।
वह अक्सर साथ निभाता है,
सब’का हमसाया कहलाता है,
कभी अब्र में खो जाता है,
कभी बर्क में सो जाता है,
आधा-आधा हो जाता है,
कभी पौना हो जाता है,
इक तारे को छोड़ अकेला,
गायब पूरा हो जाता है।
तारों की इक भीड़ लिए,
रातों में मेरे घर आता है,
और गांव-गली के बच्चों का,
चंदा मामा कहलाता है।
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Thankyou so much 🙏
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🙏
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Amazing poem 👍👍
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Thank you bandhu 😄
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Welcome
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